शनि शिंगणापुर (Shani Shingnapur) महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। यह गांव भगवान शनि को समर्पित है और यहां शनि देव की एक अनोखी मूर्ति है, जो बिना किसी मंदिर के खुले स्थान में विराजमान है। इस स्थान की विशेषता यह है कि यहां के घरों में दरवाजे और ताले नहीं होते, क्योंकि लोग मानते हैं कि शनि देव उनके गांव की सुरक्षा करते हैं।
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है शिंगणापुर गांव, जिसे शनि शिंगणापुर के नाम से जाना जाता है। यह गांव हिन्दू धर्म के विख्यात शनि देव की वजह से प्रसिद्ध है, क्योंकि इस गांव में शनि देव का चमत्कारी मंदिर स्थित है। आपको शायद यकीन न हो लेकिन इस गांव के किसी भी घर या दुकान में दरवाजा नहीं है। कहते हैं कि बीते कुछ समय में यह गांव अपनी इसी खासियत से देश-दुनिया में काफी मशहूर हुआ था। लेकिन यहां दरवाजा क्यों नहीं प्रयोग किया जाता? चलिए अब आपको शिंगणापुर मंदिर की कहानी बताते हैं जिसके चलते शिंगणापुर गांव में शनि देव की इतनी महिमा बढ़ गई।
कहते हैं एक बार इस गांव में काफी बाढ़ आ गई, पानी इतना बढ़ गया कि सब डूबने लगे। लोगों का कहना है कि उस भयंकर बाढ़ के दौरान कोई दैवीय ताकत पानी में बह रही थी। जब पानी का स्तर कुछ कम हुआ तो एक व्यक्ति ने पेड़ की झाड़ पर एक बड़ा सा पत्थर देखा। ऐसा अजीबोगरीब पत्थर उसने अब तक नहीं देखा था, तो लालचवश उसने उस पत्थर को नीचे उतारा और उसे तोड़ने के लिए जैसे ही उसमें कोई नुकीली वस्तु मारी उस पत्थर में से खून बहने लगा। यह देखकर वह वहां से भाग खड़ा हुआ और गांव वापस लौटकर उसने सब लोगों को यह बात बताई। सभी दोबारा उस स्थान पर पहुंचे जहां वह पत्थर रखा था, सभी उसे देख भौचक्के रह गए। लेकिन उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिरकार इस चमत्कारी पत्थर का क्या करें। इसलिए अंतत: उन्होंने गांव वापस लौटकर अगले दिन फिर आने का फैसला किया। उसी रात गांव के एक शख्स के सपने में भगवान शनि आए और बोले “मैं शनि देव हूं, जो पत्थर तुम्हें आज मिला उसे अपने गांव में लाओ और मुझे स्थापित करो”।
अगली सुबह होते ही उस शख्स ने गांव वालों को सारी बात बताई, जिसके बाद सभी उस पत्थर को उठाने के लिए वापस उसी जगह लौटे। बहुत से लोगों ने प्रयास किया, किंतु वह पत्थर अपनी जगह से एक इंच भी न हिला। काफी देर तक कोशिश करने के बाद गांव वालों ने यह विचार बनाया कि वापस लौट चलते हैं और कल पत्थर को उठाने के एक नए तरीके के साथ आएंगे। उस रात फिर से शनि देव उस शख्स के सपने में आए और उसे यह बता गए कि वह पत्थर कैसे उठाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि “मैं उस स्थान से तभी हिलूंगा जब मुझे उठाने वाले लोग सगे मामा-भांजा के रिश्ते के होंगे”। तभी से यह मान्यता है कि इस मंदिर में यदि मामा-भांजा दर्शन करने जाएं तो अधिक फायदा होता है। इसके बाद पत्थर को उठाकर एक बड़े से मैदान में सूर्य की रोशनी के तले स्थापित किया गया।
आज शिंगाणपुर गांव के शनि शिंगाणपुर मंदिर में यदि आप जाएं तो प्रवेश करने के बाद कुछ आगे चलकर ही आपको खुला मैदान दिखाई देगा। उस जगह के बीचो-बीच स्थापित हैं शनि देव जी। यहां जाने वाले आस्थावान लोग केसरी रंग के वस्त्र पहनकर ही जाते हैं। कहते हैं मंदिर में कथित तौर पर कोई पुजारी नहीं है, भक्त प्रवेश करके शनि देव जी के दर्शन करके सीधा मंदिर से बाहर निकल जाते हैं। रोजाना शनि देव जी की स्थापित मूरत पर सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है। मंदिर में आने वाले भक्त अपनी इच्छानुसार यहां तेल का चढ़ावा भी देते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जो भी भक्त मंदिर के भीतर जाए वह केवल सामने ही देखता हुआ जाए। उसे पीछे से कोई भी आवाज लगाए तो मुड़कर देखना नहीं है। शनि देव को माथा टेक कर सीधा-सीधा बाहर आ जाना है, यदि पीछे मुड़कर देखा तो बुरा प्रभाव होता है।
मूर्ति
शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। राजनेता व प्रभावशाली वर्गों के लोग यहाँ नियमित रूप से एवं साधारण भक्त हजारों की संख्या में देव दर्शनार्थ प्रतिदिन आते हैं।
छवि के किनारे एक त्रिशूल (त्रिशूल) रखा गया है और दक्षिण की ओर एक नंदी (बैल) की छवि है। सामने शिव और हनुमान की छोटी-छोटी प्रतिमाएँ हैं।
आचार्य उदासी बाबा के समय में, मंदिर में केवल तीन लोग आते थे। अर्थात्, दगड़ू चंगेडिया, हस्तीमल चंगेडिया और बद्री टोकसे की माँ। वे भी शनिवार को ही आते थे. अब, प्रतिदिन 13,000 से अधिक आगंतुक आते हैं।
आम तौर पर, मंदिर में प्रतिदिन 30-45,000 आगंतुक आते हैं, जो अमावस्या (अमावस्या का दिन) पर लगभग तीन लाख (यानी तीन लाख) तक पहुंच जाते हैं, जिसे शनि को प्रसन्न करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है।
जानकारियां – Information | |
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निर्माण | स्वयंभू प्रतिमा |
द्वारा उद्घाटन | – |
समर्पित | श्री शनिदेव |
देख-रेख संस्था | श्री शनैश्वर देवस्थान ट्रस्ट, भक्तनिवास। |
फोटोग्राफी | नहीं |
नि:शुल्क प्रवेश | हाँ |
समय | 24 घंटे |
पूजा का समय | प्रतिदिनप्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे |
दर्शन में लगने वाला समय | 0.5-1 घंटे |
घूमने का सबसे अच्छा समय | जून से दिसंबर |
वेबसाइट | www.shanidev.com/ |
फोन | – |
बुनियादी सेवाएं | प्रसादम,होटल,बैठने की बेंचेस,पार्किंग,डाइनिंग हॉल |
कैसे पहुचें – How To Reach | |
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पता | Ghodegaon Phata, Shani Shingnapur, Maharashtra 414105 |
सड़क/मार्ग | घोडेगांव से 6 किमी,औरंगाबाद से 84 किमी,अहमदनगर से 35 किमी,शिरडी से 70 किमी |
रेलवे स्टेशन | अहमदनगर, राहुरी, श्रीरामपुर और बेलापुर |
हवा मार्ग | अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई |
फोटोग्राफी | नहीं |
निर्देशांक | 19°22’59.9″N 74°51’32.6″E |