Home त्योहार Ram Navami – रामनवमी

Ram Navami – रामनवमी

by appfactory25
0 comments

यह त्योहार हिन्दू कैलेंडर के चैत्र मास की नवमी तिथि को मनाया जाता है। रामलीला का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें भगवान राम की कथा को स्थानीय अभिनेताओं द्वारा नाट्यरूप में प्रस्तुत किया जाता है।

राम नवमी को भगवान श्रीराम के अवतरण दिवस के रूप मे मानते है। यह पर्व हिंदू पंचांग के प्रथम माह चैत्र के शुक्ला पक्ष की नवमी के दिन आता है तथा यह उत्सव चैत्र नवरात्रि का नौवें दिन के रूप मे भी मनाया जाता है। श्री राम का प्राकट्य अभिजित नक्षत्र में दोपहर बारह बजे हुआ था।

भगवान श्रीराम को भारत मे एक आदर्श पुरुष के रूप मे माना जाता है, इस कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहा जाता है, तथा उनके उच्चतम प्रशासनिक कौशल को राम-राज्य के नाम से संबोधित किया जाता है।

राम नवमी के दिन भक्त पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र की जन्मभूमि अयोध्या की पवित्र नदी सरयू में डुबकी लगाते हैं। तथा भक्त भगवान श्री राम, उनकी पत्नी माता सीता, उनके छोटे भाई श्री लक्ष्मण और श्री राम भक्त हनुमान जी से संबंधित भजन, कीर्तन, रामायण पाठ, उपवास, शोभा यात्रा और रथ यात्रा का आयोजन किया जाता हैं। माना जाता है कि, श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस दिन राम चरित मानस की रचना आरंभ की थी।

श्रीराम जी की पवित्र जन्म कथा

रामायण और रामचरित मानस हमारे पवित्र ग्रंथ हैं। तुलसीदास जी ने श्री राम को ईश्वर मान कर रामचरितमानस की रचना की है किन्तु आदिकवि वाल्मीकि ने अपने रामायण में श्री राम को मनुष्य ही माना है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस को राम के राज्यभिषेक के बाद समाप्त कर दिया है वहीं आदिकवि श्री वाल्मीकि ने अपने रामायण में कथा को आगे श्री राम के महाप्रयाण तक वर्णित किया है।

महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ आरंभ करने की ठानी। महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया। महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया। निश्‍चित समय आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ जी तथा अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि को लेकर यज्ञ मण्डप में पधारे। इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया। सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगन्ध से महकने लगा।


समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट कर के सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई। राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद चरा(खीर) को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों ने गर्भधारण किया।

जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अत्यंत सुंदर था। उस शिशु को देखने वाले देखते रह जाते थे। इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ।

सम्पूर्ण राज्य में आनन्द मनाया जाने लगा। महाराज के चार पुत्रों के जन्म के उल्लास में गन्धर्व गान करने लगे और अप्सराएं नृत्य करने लगीं। देवता अपने विमानों में बैठ कर पुष्प वर्षा करने लगे। महाराज ने उन्मुक्त हस्त से राजद्वार पर आए भाट, चारण तथा आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मणों और याचकों को दान दक्षिणा दी। पुरस्कार में प्रजा-जनों को धन-धान्य तथा दरबारियों को रत्न, आभूषण प्रदान किए गए। चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा किया गया तथा उनके नाम रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए।

आयु बढ़ने के साथ ही साथ रामचन्द्र गुणों में भी अपने भाइयों से आगे बढ़ने तथा प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय होने लगे। उनमें अत्यन्त विलक्षण प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरू अल्प काल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गए। उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एवं सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई। वे निरन्तर माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे।

उनका अनुसरण शेष तीन भाई भी करते थे। गुरुजनों के प्रति जितनी श्रद्धा भक्ति इन चारों भाइयों में थी उतना ही उनमें परस्पर प्रेम और सौहार्द भी था। महाराज दशरथ का हृदय अपने चारों पुत्रों को देख कर गर्व और आनन्द से भर उठता था।

जानकारियां – Information
जन्मअयोध्या, कोशल (वर्तमान उत्तर प्रदेश , भारत )
नाममश्री रामचन्द्र
पितादशरथ
माँकौशल्या
सौतेली माँकैकेयी & सुमित्रा
भाई-बहनलक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न
जीवनसाथीसीता
संबंधनविष्णु का सातवाँ अवतार
धामअयोध्या
मंत्रजय श्री राम, जय सिया राम, हरे राम, रामनाम जप
हथियारशारंगा (धनुष) और बाण
सेनावानर सेना
समारोहरामनवमी, विवाहपंचमी, दिवाली
राजवंशरघुवंश – सूर्यवंश
सेनावानर सेना
दोस्तसुग्रीव, निषादराज
भक्तशबरी, हनुमान, विभीषण
शासनकरीब 11000 वर्ष अयोध्या का शासन किया था
मृतसरयू नदी , अयोध्या, कोसल (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
वर्तमान में राम के वंशज पद्मनाभ सिंह

You may also like

Leave a Comment